अत्यधिक भूलना, स्मृतिभ्रंश अथवा डिमेंशिया

अत्यधिक भूलना, स्मृतिभ्रंश अथवा डिमेंशिया अपने भूलने की आदत को गंभीरता से ले इसका मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराये … क्योकि डिमेंशिया की शुरुआत इसके लक्षणों के शुरू होने से 5 से 10 साल पहले हो जाती हैओमनीकेयर हेल्थ हाउस के मानसिक रोग जागरूकता कार्यक्रम के अंतर्गत जाने एक जटिल रोग

स्मृतिभ्रंश या डिमेंशिया : स्मृतिभ्रंश या डिमेंशिया – मस्तिष्क को क्षतिग्रस्त करने वाला एक रोग जो न केवल धीमे – धीमे मस्तिष्क की क्षमताओं को कम करता जाता है और अंतत: मस्तिष्क को बना देता है क्षीण और जर्जर | स्मृतिभ्रंश या डिमेंशिया रोग के लक्षणो के दिखने से वर्षो पहले हो जाती है इसकी शुरुआतडिमेंशिया के लिए सबसे पहले मष्तिष्क के बारे में जाने : मस्तिष्क की संरचना को यदि जाने तो पृथ्वी ने मस्तिष्क निर्माण में लगभग 6.5 अरब साल लिए हैं | मस्तिष्क में लगभग 100 करोड़ नयूरोंस हैं एवं एक न्यूरॉन की मेमोरी क्षमता लगभग 80 जीबी हैं | प्राय: लोग ये समझते हैं की उम्र के साथ मस्तिष्क कमजोर होता है परन्तु वास्तविकता ये है की मस्तिष्क को 7 साल और 73 की उम्र तक एक ही जैसा स्वस्थ रखा जा सकता है बशर्ते की हम उसकी ठीक से देखभाल करें जोकि पूरी तरह से स्वयं हमारे उपर निर्भर करती है | एक तनाव-रहित , नशा-रहित , अपेक्षा-रहित , पाप-रहित एवं परोपकार-सहित जीवनशैली और सही खान- पान मनुष्य को आजीवन सारे शारीरिक एवं मानसिक रोगों से बचा सकता है और मस्तिष्क की क्षमताओं को आजीवन स्वस्थत रख सकता है |

भारत में डिमेंशिया : भारत में 2016 के आंकलन के अनुसार लगभग 41 लाख व्यक्तियों को डिमेंशिया हैं। इस संख्या में डिमेंशिया के सभी प्रकार मौजूद हैं, जैसे :-

1. अल्ज़ाइमर रोग (Alzheimer’s Disease),

2. लुई बाड़ी डिमेंशिया (Lewy Body Dementia, LBD),

3. वास्कुलर डिमेंशिया (नाड़ी सम्बंधित/ संवहनी मनोभ्रंश) (Vascular dementia),

4. फ्रंटोटेम्पोरल (fronto-temporal dementia, FTD), इत्यादि।

5. पार्किन्सन डीसीस

6. क्रूट्सफेल्ड जेकब रोग

7. नॉर्मल प्रैशर हाइड्रोसेफेल्स

8. हंगटिंगटन डीसीस

9. वेर्निक-कोर्साकोफ सिंड्रोम

अगर आप उन परिवारों को देखें जिनमे बड़ी उम्र के लोग रहते हैं, तो ऐसे हर 16 परिवारों में से एक परिवार में डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति पाया जाएगा। भारत में डिमेंशिया के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, और इसके लक्षणों को व्यक्ति और परिवार वाले पहचान नहीं पाते और चिकित्सक के पास नहीं जाते, इसलिए ज़्यादातर रोगियों का निदान (diagnosis) नहीं होता और वो परिवार के लिए बोझ बन जाते हैं क्योंकि डिमेंशिया के कारण वो एक सामान्य जीवन नहीं जी पाते यहाँ तक की उनकी उत्सर्जन प्रक्रियाये भी नियंत्रित नहीं रहती और वो बिस्तर पर ही सब कुछ करने लगते हैं |

डिमेंशिया क्या है : संक्षेप में कहें तो डिमेंशिया किसी विशेष बीमारी का नाम नहीं, बल्कि एक बड़े से लक्षणों के समूह का नाम है (संलक्षण, syndrome)। डिमेंशिया को कुछ लोग “भूलने की बीमारी” कहते हैं, परन्तु डिमेंशिया सिर्फ भूलने का दूसरा नाम नहीं हैं, इसके अन्य भी कई लक्षण हैं–नयी बातें याद करने में दिक्कत, तर्क न समझ पाना, लोगों से मेल-जोल करने में झिझकना, सामान्य काम न कर पाना, अपनी भावनाओं को संभालने में मुश्किल, व्यक्तित्व में बदलाव, इत्यादि। यह सभी लक्षण मस्तिष्क की हानि के कारण होते हैं, और ज़िंदगी के हर पहलू में दिक्कतें पैदा करते हैं। यह भी समझें कि यह ज़रूरी नहीं है कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की याददाश्त खराब हो–कुछ प्रकार के डिमेंशिया में शुरू में चरित्र में बदलाव, चाल और संतुलन में मुश्किल, बोलने में दिक्कत, या अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, पर याददाश्त सही रह सकती है |

डिमेंशिया के लक्षण : डिमेंशिया के लक्षण उनके प्रकार पर निर्भर करते हैं जिसमे डिमेन्शिया का सबसे अधिक लोगों को प्रभावित करने वाला प्रकार अल्ज़ाइमर डिमेंशिया है |

डिमेंशिया के लक्षणों के कुछ उदाहरण :

हाल में हुई घटना को भूल जाना |

बातचीत करते समय सही शब्द याद न आना |

एक ही बात को बार – बार दोहराना- बैंक की स्टेटमेंट न समझ पाना, भीड़ में या दुकान में सामान खरीदते समय घबरा जाना

नए मोबाईल के बटन न समझ पाना

ज़रूरी निर्णय न ले पाना

लोगों और साधारण वस्तुओं को न पहचान पाना

खाना खाकर फिर से मांगना की अभी खाना नहीं खाया- रोगियों का व्यवहार बदल जाना

कई डिमेंशिया वाले व्यक्ति ज्यादा शक करने लगते हैं, और आसपास के लोगों पर शक करना की लोग उनके विरुद्ध काम कर रहे हैं, घर में उनके सामान की चोरी करने का, मारने का, या उन्हे भूखा रखने का आरोप भी लगाने लगते हैं

कुछ व्यक्ति अधिक उत्तेजित रहने लगते हैं, कुछ अन्य व्यक्ति लोगों से मिलना बंद कर देते हैं और दिन भर चुपचाप बैठे रह ते हैं।- कुछ व्यक्ति अश्लील हरकतें भी करने लगते हैं

बात करते समय भावों में बदलाव जैसे बात करते समय बिना वजह रोने लगनाविभिन्न लोगो में

डिमेंशिया के विभिन्न लक्षण : कौन से व्यक्ति में कौन से लक्षण नज़र आयेंगे, यह इस बात पर निर्भर है कि उनके मस्तिष्क के किस हिस्से में हानि हुई है। किसीमे कुछ लक्षण नज़र आते हैं, किसी में कुछ और। जैसे कि, कुछ रोगियों में भूलना इतना प्रमुख नहीं होता जितना चरित्र का बदलाव। भारत में ज़्यादातर लोग इन सब लक्षणों को उम्र बढ़ने का स्वाभाविक अंश समझते हैं, या सोचते हैं कि यह तनाव के कारण है या व्यक्ति का चरित्र बिगड गया है, पर यह सोच गलत है। ये लक्षण डिमेंशिया या अन्य किसी बीमारी के कारण भी हो सकते हैं, इसलिए चिकित्सक की सलाह लेना उपयुक्त है।भारत में

डिमेंशिया से जुडी भ्रान्तिया और अज्ञानता : भारत में डिमेंशिया की जानकारी कम होने के कारण इनमे से कई लक्षणों के साथ भ्रान्तिया भी जुड़ी है। इसलिए डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति यह सोच कर अपनी समस्याओं को छुपाते हैं कि उन्हें मानसिक रूप से अस्वस्थ समझा जाएगा या लोग हंसेंगे कि क्या छोटी सी बात लेकर चिकित्सक के पास जाने क क्या जरूरत है ! परिवार वाले इन लक्षणों को बढ़ती आयु का परिणाम समझ कर नकार देते हैं। वे यह नहीं सोचते कि सलाह पाने से स्थिति में सुधार हो सकता है। उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि व्यक्ति को सहायता की ज़रूरत है। व्यक्ति के बदले हुए व्यवहार को परिवार वाले हट्टीपन या चरित्र का दोष या मानसिक अस्वस्थता समझते हैं| डिमेन्शिया रोगी कभी – कभी दुःखी और निराश होते हैं, तो कभी – कभी हर व्यक्ति पर गुस्सा करने लगते हैं या उन्हे अवसाद रोगी समझ लिया जाता है |

डिमेंशिया का निदान क्यों ज़रूरी है और इसके लिए क्या किया जाना चाहिए : अगर कोई व्यक्ति डिमेंशिया के लक्षणों से परेशान है तो चिकित्सक से सलाह करनी चाहिए। चिकित्सक जांच करके पता चलाएंगे कि यह लक्षण किस रोग के कारण हो रहे हैं।हर भूलने का मामला डिमेंशिया नहीं होता–हो सकता है कि लक्षण किसी दूसरी समस्या के कारण हों, जैसे कि ये अवसाद (depression) या किसी अन्य कारणो से भी हो जाते हैं और ऐसे रोग औषधि से पूरी तरह ठीक हो सकते है (उदाहरण के तौर पर thyroid होरमोन की कमी होना)। कुछ प्रकार के डिमेंशिया ऐसे भी हैं जिनका उपचार तो नहीं, पर फिर भी औषधि से रोगियों के लक्षणों में पूरी तरह से आराम मिला रहता है और रोगी एक प्रकार से एक सामान्य जीवन ले सकता है। यह सब चिकित्सक के परीक्षण एवं उपचार से ही संभव है|

डिमेंशिया किसी को भी हो सकता है : इससे ग्रस्त व्यक्ति हर देश के निवासियों और हर जाति और वर्ग से जुड़े लोगों में लगभग एक समान पाये जाते हैं| परंतु कुछ देशों और वर्गों मे इसकी संख्या अधिक है इसकी संभावना उम्र के साथ बढ़ती है। अगर आप अधिक आयु के लोगों के बारे मे जानकारी लेंगे तो पायेंगे कि परिवार में कई बार जिसे एक समय किसी व्यक्ति के व्यवहार को यदि अटपटा व्यवहार समझा था वोव्यवहार शायद डिमेंशिया के कारण था। (डिमेंशिया को स्मृतिभ्रंश या मनोभ्रंश भी कहा जाता है ) |

डिमेंशिया की जल्दी पहचान उसके सम्पूर्ण निदान में सहायक : विश्व भर में डिमेंशिया की पहचान पिछले कुछ दशक में ज्यादा अच्छी तरह से हुई है, और अब चिकित्सको का मानना है कि यह लक्षण उम्र बढ़ने का साधारण अंग नहीं हैं। जो रोग डिमेंशिया का कारण हैं, उन पर शोध हो रहा है ताकि बचाव और इलाज के तरीके ढूंढें जा सकें। आजकल भी, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों और उनके परिवार वालों के आराम के लिए कुछ उपाय मौजूद हैं, जिससे व्यक्ति और उसके परिवार वाले ज्यादा सरलता और सुख से रह सकें, लक्षणों की वजह से हो रही तकलीफें कम हो जाएँ, और घर के वातावरण का तनाव कम हो

डिमेंशिया और बढ़ती आयु में फ़र्क : डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के साथ रहना एवं किसी अन्य स्वस्थ अधिक आयु के व्यक्ति के साथ रहने से बहुत फ़र्क है। डिमेंशिया की वजह से व्यक्ति के सोचने-करने की क्षमता पर बहुत असर होता है, और परिवार वालों को देखभाल के तरीके उसके अनुसार बदलने होते हैं। व्यक्ति से बातचीत करने का, उसकी सहायता करने का, और उसके उत्तेजित या उदासीन मूड को संभालने का तरीका बदलना होता है।समय के साथ रोग के कारण मस्तिष्क में बहुत अधिक हानि हो जाती है, और व्यक्ति ज़्यादा निर्भर होते जाते हैं। परिवार वालों को देखभाल के लिए दिन भर व्यक्ति के साथ रहना पड़ता है, और इस को संभव बनाने के लिए अपनी अन्य जिम्मेदारियों में समझौता करना पड़ता है।

बहुत कम उम्र में होने वाला डिमेंशिया : डिमेंशिया सिर्फ बुढापे में ही नहीं, पहले भी हो सकता है (जैसे कि 30, 40 या 50 साल में) : कई लोग सोचते हैं कि डिमेंशिया अधिक आयु की बीमारी है, और सिर्फ बुजुर्गों में पायी जाती है, पर कुछ प्रकार के डिमेंशिया जल्दी शुरू हो सकते हैं। WHO (वर्ल्ड हेल्थ ऑरगैनाइज़ेशन) का अनुमान है कि 65 साल से कम उम्र में होने वाले डिमेंशिया (जिसे young onset या early onset कहते हैं) अकसर पहचाने नहीं जाते और ऐसे डिमेंशिया के रोगी डिमेंशिया से पीड़ित लोगो में लगभग 6 से 9 प्रतिशत हो सकते हैं।

डिमेंशिया रोगियों की परेशानी नहीं बल्कि उनके देखरेख करने वालों के लिए भयानक समस्या : उचित देखभाल रोगियों और परिवार की खुशहाली के लिए बहुत ज़रूरी है: डिमेंशिया में दवाई की भूमिका बहुत सीमित है परन्तु धीमे – धीमे शोधो के बढ़ने से अनेक महत्वपूर्ण औषधियां अब उपलब्ध है जो मष्तिष्क को दोबारा ठीक कर सकती हैं, इसलिए डिमेंशिया वाले व्यक्ति और परिवार की खुशहाली उचित देखभाल पर निर्भर है। यदि परिवार वाले यह समझ पाएँ कि डिमेंशिया वाले व्यक्ति को किस प्रकार की दिक्कतें हो रही हैं, और वे व्यक्ति से अपनी उम्मीदें उसी हिसाब से रखें और मदद के सही तरीके अपनाएँ तो स्थिति सहनीय रह पाती है, वरना व्यक्ति और परिवार, दोनों के लिए बहुत तनाव बना रहता है। कारगर देखभाल के लिए डिमेंशिया को समझना और सम्बंधित देखभाल के तरीके समझना आवश्यक है | इसके लिए आप चिकित्सक से परामर्श तुरंत लें |

By: Dr R.K. Thukral

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